Tuesday, September 13, 2011

वैदेही

वैदेही
सामने है सबके
विराट,
कई विराम
और अल्प विराम लिए
एक घटक, रक्त की कुछ बूँदें हल की फाल
वैदेही
सामने है
अबोध, साकार
कुछ प्रश्न, व्यवस्था, सत्ता
और राम लिए
वह विदेह ही है पूरी की पूरी
सदेह मे प्रतिस्थापित
समर्पित, निःशब्द, अमूर्त सी
कवि का सबसे भयानक शाहकार
आर्तनाद, हाहाकार
विराट ..... साकार ........विदेह

कौन है राम ?
राजा राम
प्रश्न ही प्रश्न
एक प्रतिउत्तर
मर्यादापुरुषोत्तम, जनविश्वास, एक संकल्प
और वैदेही ?
अनुगामिनी, सह चरणी किन्तु अबला
यही है वैदेही .
पड़ी है . वहीँ .........
चली थी जहाँ से अनाम
हजारों आचार, असंख्य चरित्र और अनगिनत अत्याचार ओढ़े
लक्ष्मण की रेखा तोड़ने की सजा और राम के अग्निपरीक्षा की जलन
सब हैं उसके साथ
पर ,
राम का संकल्प
'क्षत्रियै धार्यते चापो
नार्त शब्द भावेदिती'
निरर्थक
लक्ष्मण की रेखा
बेकार
वैदेही सोचती है खड़ी
क्रोध और घुटन लिए
कब धरती फटेगी ?
कब होगा मेरे हिस्से के इस राम राज का अंत?
ओह! अभी तो
एक रात बाकी है
अभी पूरा श्राप बाकी है
इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार
सुनो
हे आकाश, हे पातळ, सभी दिशाओं
सुनो, सुनो,
मेरा संबोधन
सुनो
नहीं चाहिए कोई राम, जनक
और वो एक रेखा
नहीं चाहिए ये चरित्र, ये जीवन दोबारा
जिससे
आनेवाली पीढियां दंश झेलेंगी सदियों
सुनो,
हे धरती फाटो
वैदेही सामने है तुहारे
अपनी चुप्पी और एक क्रोध लिए
सामने है तुम्हरे , सामने है तुम्हारे

--------------------------------- अलका













अलका

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