Thursday, October 27, 2011

एक टुकड़ा चाँद माँगा था कभी

हमने तुमसे दो बोल मांगे थे

जिंदगी के

तुमने पूरी ग़ज़ल

लिख देंगे कहा

हमने एक टुकड़ा चाँद माँगा था कभी

तुमने पूरा चाँद ला देंगे

वादा किया

हमने ऊँगली पकड़ लो कुछ ऐसा कहा

तुमने हौले से

हाथों पे हाथ रख दिया

क्या कहूँ

ये मेरी प्रेम की समझ थी

छिटपुट सी तब

लगता है सचमुच कितने बेमानी थे

वो लफ्ज़, वो वादे वो हाथ

आज टुकड़ा टुकड़ा यादों को

पूरे दिन जोड़ती रही हूँ

वो सारे के सारे पल छिन

जो तुमने दिए थे

आज बौने लगने लगे हैं

उस सच के आगे

जिसको सालों से जिया है मैंने

इसमन के सारे तहखाने सूने लगने लगे हैं

एक छल को याद कर

जिसने कुतर डाली जिंदगी

और उसके सारे अक्स

आज सोचती हूँ

तुम न होते जिंदगी में तो

कितना अच्छा होता

कम से कम मैं

अपने पास तो होती

............................................अलका

1 comment:

  1. उफ़ अलका जी कितना सही कह दिया…………दर्द ही दर्द भरा है आईने मे

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