Monday, November 7, 2011

छोटी जाति की औरतें

१.
औरतें
बटी हैं इस देश में
जातियों में, वर्गों में, छूत - अछूत में
और बहुत सी अलग -अलग पहचानो में
कब हुआ ये बटवारा और क्यों
पता नहीं
पर पहली बार
डंके की चोट पर प्रगति कर रहे
इस प्रदेश में
जातियों में बाटी गयी औरतों के लिए
सुने कुछ संबोधन
खचाखच भरी एक दुकांन पर
जब दूकानदार ने -
'छोट जातिया हई सब
हटाव इहाँ से 'कह
उनकी आर्थिक गरीबी का मज़ाक बनाते हुए
फिकरा कसा -
'पैसा ना कौड़ी
बीच बाज़ार में दौरा -दौरी '
बौखला जाने वाले इस वक्तव्य पर भी
संकोच में वो चार
चुप चुप कोने में खडी सुनती रहीं
अपना उपहास.

२.
उसे सूप चाहिए था छठ के लिए
इच्छा थी उसकी
के इस बार सूर्य देव को
पीतल के कलसुप में अरग दिया जाये
अपनी अंती के सारे पैसे जोर बटोर के
पहुँच गयी थी
बर्तन की दुकान पर
दो ले लूंगी सोचा था उसने
बहुत लालच से उसने सूपों को देखा और उठा लिए दो
लेने के लिए
दूकानदार कनखियों से कभी उसे देखता
कभी उसके हाथ के सूपों को
चार सौ में दो मिल जायेंगे
यही सोच उठाये थे दो
पर
एक ही मिलेगा यह जान मन मसोस लिया उसने
और दुकानदार ने छीन लिया
यह कह के -
जेतना औकात हो ओतने सामान लेना चाहिए
हाथ से सूप
३.
उनके घर में,
दीवाली की रात बरामदे के
कोने में बैठी वो औरत
इंतज़ार में थी के आज मिलेगा
अच्छा खाना और कुछ अच्छे पकवान
इंतज़ार करते करते
वक्त बीतता रहा
और वो बैठी रही
सबसे अंत में
उसकी थाली में थी
सुबह की सेंकी गयी कुछ पूड़ियाँ
अंचार और कुछ पेडे
................................alka

2 comments:

  1. आपकी कविता छोटी जात की औरतें ने काफी प्रभावित किया। वास्‍तव में कविता का तात्‍पर्य ही मानवीय सरोकारों से है। जहां कहीं भी सामाजिक विकृतियां दिखाई दे, कवि को अपने दायित्‍व का पालन करना चाहिए।

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