Thursday, November 10, 2011

वो रथी हो गए हैं

१.
देखिये
चारो दिशाओं में वो रथी हो गए हैं
आजकल
और हम विरथी
कैसी विडम्बना है ना
हमारे ही दिए रथ पे सवार वो
राजसूय यज्ञ के लिए निकल पड़े हैं
और
हम
घँसे जा रहे हैं
दो गज ज़मीन में
कोई खाली पेट , कोई पिचके गाल और कोई
नंग - धडंग
बिना पनही के भाग रहे हैं सब
दाल - भात रोटी के लिए
इधर - उधर
और महरूम होते जा रहे हैं
अपनी हिस्सेदारी से

२.
लगभग एक दशक हो गया
जब कुछ अपने ही
झोंक दिए गए थे
अपनी ही जमीन पर
गाजे - बाजे के साथ
सबक सिखाने के लिए
और आज पूरा क़ा पूरा दशक बीत गया
टक - टक
बूटों के साए तले चीखते-चिल्लाते
कुछ परिजन आज भी
दर -दर गुहार कर
छान रहे हैं ख़ाक
न्याय की देहरी पर
एक फैसले के लिए
कुछ सजे धजे रथों के साथ
यात्रा शुरू है वहां
३.
यात्रा यहाँ भी शुरू है
गरीब रेखा के नीचे
गुज़र - बसर करने वाले
एक गरीब प्रदेश में
लकदक करोड़ों की यात्रा
टूटी -फूटी खटिया पर
बिन बिस्तर के बैठी उस बुधिया से बतियाते
औचक है उनकी यात्रा
लाव लश्कर के साथ
मरते हुए बच्चों, पिचके गलों
और धंसी हुई आँखों वाले लोंगों के बीच
वो यात्रा कर रहे हैं
यह जानने के लिए कि
कैसी है जनता ?
४.
एक यात्रा क़ा
अभी ब्लू प्रिंट बन रहा है
एक दलित की बेटी की यात्रा क़ा ब्लू प्रिंट
जिसके रस्ते बुहार दिए जाते हैं
हर रोज
उसके गुजरने के पहले
और धो दी जाती है सड़कें
गैलनो पानी से
ताकि मेहनत कशों और गरीबों की
बेवाइयों से निकालने वाली आह को
साफ़ किया जा सके
और टहल सकें कुछ लोग
उन साफ़ सुथरी सडकों पर
गरीबी मिटाने क़ा नारा ले
अभी बाकी है उनकी
यात्रा


५.
कुछ यात्रायें
अभी आरम्भ नहीं हुई हैं
कयास लग रहे हैं कि
होगी जल्द ही
एक राजकुमार की यात्रा
शायद राजतिलक के बाद
और एक राजमाता की भी
तब सब देखेंगे
कौन है पुरसाहाल और कौन मालामाल
और तब कर पाएंगे हम
यात्राओं क़ा सही गुना - भाग

.


६.
चारो तरफ सज़ गए है रथ
झूठ के वादे और कुछ नए सौदे के साथ
कितनी हसीन है ना ये यात्रायें
और इतनी महीन भी
................................................अलका

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