Tuesday, January 29, 2013

तुम फिर मुझे उसी भट्ठी में डालना चाहते हो
जहां से तपकर मैं निकले थी
उसी कब्र में दफन करने को आतुर हो
जहां से मैं उड चली थी

मैं जब भी कुछ पन्ने तलाश
उसपर स्त्री लिखती हूं
तुम सब मिलकर उसे
रद्दी की टोकरी में डाल देते हो
और जब भी अधिकार लिखती हूं
उसे टुकडॉ में बांट बेमानी करने लगते हो

देख रही हूं
तुम्हारे पन्ने पर स्त्री होने का मतलब
एक संकीर्ण वक्तव्य
मां, ममता और माया

इन परिभाषाओं से निकल
अब लिखने लगी हूं स्त्री
समझने लगी हूं स्त्री
और गढने लगी हूं स्त्री

इस नये संकल्प में
भट्ठियां अब
उर्जा बन गयी हैं
और कब्रें
नसीहतों का भण्डार ............................अलका

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